|| श्री कृष्ण महाराज धनी अवधुत ||
 || Chaturpata Atharvan Ved ||
|| पुनाजी देवस्थान, सावंगा-विठोबा ||

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|| पुनाजी देवस्थान, सावंगा-विठोबा ||
सावंगा-विठोबा

                 सत् यवग का आध्यात्मीक ग्यान              
|| पुनाजी देवस्थान, सावंगा-विठोबा ||
            सावंगा-विठोबा , तालुका : चांदुररेल्वे , जिल्हा : अमरावती,
            राज्य : महाराष्ट ( विदर्भ विभाग ), भारत
Punaji Devthan Image

पुनाजी, सावंगा-विठोबा यहं देवस्थान चतुर्पती कृष्ण अवधुत पंथ का १८ शतकमे का देवस्थान है । चतुर्पती कृष्ण अवधुत पंथ के प्रथम गादीपती श्री पुनाजी थे । श्री पुनाजीने यह पंथ संत हेंगडुजी, संत देवमनजी, और अन्य चतुर्पती संतगण के साथ विचार विनिमय करके इस मिर्तलोक मे स्थापन किया ।

१८ वे शतक से इस देवस्थान/राउळ के जगह पुर्ण अवतार कृष्णाजी के मुखसे निकला हुऑं चतुर्पता अथर्वन् वेद के चतुर्पता ग्यानसंप्पन ओवी भजन का गायन हो रहा है । १८ वे शतक के गादीपती श्री पुनाजी सह हेंगडुजी, देवमनजी, संत भक्तगण व्दारा मिर्तलोक मे स्थापीत कृष्ण अवधुत पंथ व्दारा चतुर्पता ग्यानसंपन्न ओवी भजन का गायन यहं महाराष्ट के विदर्भ विभागमेके गावोगांव और शहरो नगरोंमे प्रेरीत और प्रसारीत कर रहे है । और पुर्ण अवतार श्री कृष्णाजी ईस पंथ के कार्य को निरंतर प्रेरणा, स्फुर्ति और शक्ती का पुरवठा कर रहे है । सत् भक्त के घरमे गुप्तरूपमे जाकर उनको अपना माध्यम बनाकर उनसे सत् यवग के कार्य करने के लिये नित साहयं हो रहे है । एैसी अनुभवी सत् भक्तों की धारणा है ।

पुनाजी, सावंगा-विठोबा ईस देवस्थान मे श्री पुनाजी सह उनके परंम् मित्र ईश्वर इन दोनो की बाहोली है । अपने अपने बाहोलीपर वो गुप्तरूपमे खडे है । वो दोनो गुप्तरूपमे कृष्णकार्यको साहयं करते हुअे आणेवाले सत् यवग के स्थापना पुर्व के कार्य प्रपंच का संभाल करने के लिये चतुर्पती कृष्ण अवधुत भक्तजनं को स्फुर्ति, प्रेरणा और शक्ती दे रहे है । अपने सत् भक्तोंके घरमे गुप्तरूपमे जाकर उस भक्तजन व्दारा सत् कार्य करवा रहे है । उनको नित साहयं हो रहे है । एैसी अनुभवी भक्तजन की धारणा है ।

चतुर्पती कृष्ण अवधुत पंथ के पुनाजी सावंगा-विठोबा ईस देवस्थानमे जानेवाले भक्तजन का दृढ विश्वास है की ः पुनाजी यह वैष्णव शक्ती के स्वामी है । इसलिये उस काल के राजुरवाडी परिसर के राजे बालाजी पाटील इन्होने उनको विष्णस्वामी एैसे अपने पलट ओवी मे बहुतसे जगहं पर संबोधित किया है । पुनाजी यह कृष्णाजीके परम्ं भक्त बने । पितृभाव से कृष्णाजीकी परंम् भक्ती कियी । और कृष्णकृपासे पुर्ण अवतार चौकडी मे के एक अवतार हो गये । पुनाजी यहं कृष्ण अवधुत पंथ के प्रथम गादिपती थे । .

श्री कृष्णाजी, हेंगडुजी, देवमनजी, पुनाजी यह चौकडी अपने अपने जगहपरसे टेलीपॅथीके विचार लहरी व्दारा एकदुसरे के संपर्क मे आकर विचार विनिमय करते थे । इसी पध्दती व्दारा उन्होने चतुर्पती कृष्ण अवधुत पंथ के नेम, उध्देश, आगेका नियोजन, और नियम, मार्गदर्शक तत्वे इत्यादी कृष्णाजीके परवानगीसे ठहराये । कृष्णाजीको इस बिर्दपर खडा रहकर साहयं करने की विनवनी कियी । पुनाजी के नेतृत्वमे इस मिर्तलोकमे चतुर्पती कृष्ण अवधुत पंथ की स्थापना कियी । और इस पंथ का विदर्भ विभाग मे के गावोंगावं और शहरो नगरोमे प्रचार प्रसार कार्य का आरंभ किया ।
पुनाजी यहं कृष्णाजीके परंम भक्त और परंम् सखा बनकर उनकी पितृभाव से परंम् भक्ती करने लगे । वो पुर्ण अवतार चौकडी रंचना मे एक अवतार बन गये । पुनाजीके नेतृत्व व्दारा मिर्तलोकमे स्थापीत चतुर्पती कृष्ण अवधुत पंथ के संस्थापक श्री कृष्णाजी सह पुनाजी, देवमनजी ईत्यादी संतगण, भक्तगण के सत् यवग व सत् यवगकालीन चतुर्पती ग्यान का प्रचार प्रसार कार्य मे निरंतर साहयं करने लगे । वो चतुर्पती कृष्ण अवधुत पंथ के सत् भक्त, भजनी, योगी इनको नित प्रेरणा, स्फुर्ति देकर साहयं होने लगे । अधिक ग्यानके लिये कृष्णामृंत पढो ।

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